टाटा ट्रस्ट्स (Tata Trusts) में 11 सितंबर, 2025 को हुई बैठक के बाद काफी विवाद खड़ा हो गया था। इस बैठक को लेकर मीडिया में यह दावा किया गया कि ट्रस्टियों के बीच “तख्तापलट” या “अधिग्रहण” की कोशिश हुई थी। लेकिन वरिष्ठ वकील और ट्रस्टी डेरियस जे खंबाटा ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया है।
खंबाटा का पत्र
10 नवंबर को लिखे गए एक पत्र में खंबाटा ने कहा कि बैठक को लेकर फैलाई गई बातें निराधार हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि बैठक का उद्देश्य केवल वार्षिक समीक्षा करना था—यह देखना कि टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्टों का प्रतिनिधित्व उनके नामित निदेशकों के माध्यम से कैसे हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह किसी को हटाने या नियंत्रण लेने की कवायद नहीं थी।
यह पत्र उन्होंने नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, विजय सिंह, प्रमित झावेरी और एच.सी. जहाँगीर को संबोधित करते हुए लिखा। खंबाटा ने यह भी कहा कि उन्हें और अन्य ट्रस्टियों को विजय सिंह के खिलाफ कोई आपत्ति नहीं थी और उन्हें अफसोस है कि कुछ ट्रस्टी बैठक में मौजूद नहीं थे।
विवाद की वजह
दरअसल, 11 सितंबर की बैठक में मतदान हुआ था जिसमें 7 में से 4 ट्रस्टियों ने विजय सिंह के पद पर बने रहने के खिलाफ वोट दिया। इसके बाद विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड से इस्तीफा देना पड़ा। इस घटना को लेकर ही विवाद बढ़ा और मीडिया में इसे “तख्तापलट” की तरह पेश किया गया।
वर्तमान स्थिति
अब टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड में नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन नामित निदेशक हैं। खंबाटा ने मीडिया कवरेज में पक्षपात और विजय सिंह को हुई असुविधा पर भी खेद जताया।
सरल शब्दों में कहें तो, 11 सितंबर की बैठक का मकसद केवल समीक्षा था, लेकिन इसके बाद उठे विवाद ने टाटा ट्रस्ट्स को चर्चा के केंद्र में ला दिया।

